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🌑 उपसंहार (Upasamhāra — उपसंहार)
“हर अंत, आरंभ की प्रतिध्वनि है।” जब बाढ़ उतर जाती है, जब आकाश अपने अंतिम तूफ़ानी प्रकाश की साँस छोड़ देता है — तब मौन लौटता है।पर वह रिक्तता का मौन नहीं होता, वह स्मृति का मौन होता है। उपसंहार वही मौन है — प्रवाहम् की अंतिम गति, जहाँ ध्वनि स्थिरता में उतरती है, जहाँ यात्रा स्वयं में विलीन होकर अपने मूल में लौट आती है। संस्कृत में उपसंहार का अर्थ है निष्कर्ष, संकलन या समापन।किन्तु दार्शनिक दृष्टि से यह केवल अंत नहीं — यह वह पवित्र कर्म है जहाँ बिखरे हुए सभी अंश पुनः समग्रता
chaitanya1827
28 अक्टू॰3 मिनट पठन


🌾 ऋतुसंधिलावण्यम् (ऋतु-संधि-लावण्यम् — ऋतुओं के संधि का सौंदर्य)
“जहाँ अंत प्रारंभ में बदलता है, वहाँ सौंदर्य श्वासों के बीच ठहरता है।” ऋतुओं के बीच एक ऐसा क्षण आता है — न तो पूर्ण रूप से ग्रीष्म, न ही वर्षा; न पूर्ण पतन, न ही पुनर्जन्म। यह वह पल है जब स्वयं काल अपनी श्वास रोक लेता है। प्रकाश की तीव्रता मंद हो जाती है, पवन अपनी भाषा बदल लेती है, और समस्त जगत एक पवित्र विराम में झूलता प्रतीत होता है। यही है — ऋतुसंधिलावण्यम् , ऋतुओं के संधि की कृपा। संस्कृत में “ऋतु” का अर्थ है ऋतु या काल का चक्र , “संधि” का अर्थ है मिलन या संगम , और “लावण्
chaitanya1827
28 अक्टू॰3 मिनट पठन


🌧️ वृष्टिकाम्पिल्य (Vṛṣṭikāmpilya — Petrichor)
“जब वर्षा थमती है, पृथ्वी फिर से साँस लेती है।” वृष्टि के बाद एक सुगंध उठती है — कोमल, पर अमिट — मानो स्मृति स्वयं जाग उठी हो। वही है वृष्टिकाम्पिल्य — वह मिट्टी की गंध जब वर्षा उसे छूती है, वह मौन चमत्कार जो प्रलय के बाद जन्म लेता है, तूफ़ान के बाद पुनर्जन्म का पहला श्वास। संस्कृत नाम वृष्टिकाम्पिल्य दो तत्वों से बना है — वृष्टि (वर्षा) और कम्पिल्य (स्पर्श या हल्के कम्पन का भाव)। दोनों मिलकर उस जीवंत क्षण को व्यक्त करते हैं जब वर्षा की बूँदें धरती को चूमती हैं और धरती अप
chaitanya1827
28 अक्टू॰3 मिनट पठन


🌊 नितान्तनीरम् (असीम अवगाहन)
“विलय ही पुनरागमन है।” जीवन और संगीत — दोनों में ऐसे क्षण आते हैं जब “मैं” और “सृष्टि” के बीच की सीमाएँ धुंधली पड़ने लगती हैं। श्रोता और स्वर के बीच कोई अंतर नहीं रह जाता — केवल एक प्रवाह, एक विलय रह जाता है। नितान्तनीरम् उसी अवस्था का अनुभव है — वह पवित्र विलय जहाँ पहचान, ध्वनि और अस्तित्व एक हो जाते हैं, जैसे जल अपनी ही समुद्र में लौट आता है। यह कोई अंत का गीत नहीं है — यह वापसी का गीत है। संस्कृत में “नितान्त” का अर्थ है पूर्ण, असीम, संपूर्ण और “नीरम्” का अर्थ है जल । द
chaitanya1827
26 अक्टू॰3 मिनट पठन


🌊 प्रवाहम् (प्रवाह — बहता हुआ जीवन)
“बहना गति नहीं — समर्पण है।” जब सूक्ष्मभूत ने मौन के भीतर का जीवन दिखाया,और अदृश्य ने अपनी हल्की धड़कनें जगाईं —तब आता है वह क्षण जब स्थिरता स्वयं को रोक नहीं पाती। वही क्षण है — प्रवाहम् ,जहाँ सब कुछ बह उठता है — निरुद्ध शक्ति मुक्त हो जाती है। 🌊 संवरण का विसर्जन जो भीतर संचित था, अब बाहर फूट पड़ता है।सृष्टि, जो अब तक भीतर की श्वास रोके थी, अब उसे छोड़ देती है —यह उथल-पुथल नहीं, बल्कि मुक्ति का नृत्य है। प्रवाहम् में बादलों की गर्जना नहीं,केवल वह धारा है जो सबको साथ लेकर
chaitanya1827
26 अक्टू॰2 मिनट पठन


🌫️ सूक्ष्मभूत (Sūkṣmabhūta — सूक्ष्म तत्त्व)
“जो दिखता है, वह नश्वर है; जो अदृश्य है, वही शाश्वत है।” जब तूफ़ान थम जाता है और बिजली दूर क्षितिज में खो जाती है,तो संसार मौन नहीं होता — वह भीतर की ओर मुड़ता है । प्रकृति जब स्थिर प्रतीत होती है, जब वायु भी श्वास रोक लेती है,तभी कुछ छिपा हुआ जागृत होता है — सृष्टि के भीतर की सूक्ष्म धड़कन। वही है सूक्ष्मभूत — सूक्ष्म तत्व ,वह अदृश्य सार जो सबको जोड़ता है,वह मौन ऊर्जा जो हर ध्वनि, हर रूप, हर श्वास के नीचे गूंजती रहती है। 🌫️ सूक्ष्म का अर्थ संस्कृत में “सूक्ष्म” का अर्थ है
chaitanya1827
26 अक्टू॰3 मिनट पठन


🌧️ त्विषीमत्तोयोत्सर्ग — तेजस्वी जल-विमोचन (Splendorous Rain)
“वर्षा विनाश नहीं — मुक्ति है। यह आकाश का अपना श्वास है।” रेष्मन् (Reṣman) के मौन और घनेपन के बाद आता है त्विषीमत्तोयोत्सर्ग —वह क्षण जब संचित ऊर्जा टूटकर बहती है, जब आकाश अपने भीतर भरी पीड़ा को संगीत में बदल देता है।यह केवल वर्षा नहीं — यह ब्रह्मांड की साँस छोड़ने की प्रक्रिया है,एक दिव्य प्राणोत्सर्ग जहाँ सब बंधन खुल जाते हैं और गति पुनः जन्म लेती है। संस्कृत में त्विषीमत्त का अर्थ है “तेज से युक्त, प्रकाशमय” और तोयोत्सर्ग का अर्थ है “जल का विमोचन”।अर्थात् यह वह अवस्था
chaitanya1827
24 अक्टू॰2 मिनट पठन


🌩️ रेष्मन् (Reṣman — तूफानी मेघ)
“हर मौन अपनी गड़गड़ाहट को संजोए होता है।” बिजली गिरने से पहले आकाश ठहर जाता है।तूफ़ान आने से पहले एक अजीब-सी निस्तब्धता फैलती है — हवा पर छाया हुआ एक मौन तनाव। रेष्मन् उसी प्रतीक्षा में जन्म लेता है। यह तूफ़ान का कोलाहल नहीं, बल्कि उससे पहले का घनत्व है — वह आध्यात्मिक गहराई जो स्वर्ग के खुलने से पहले वातावरण को भारी कर देती है। संस्कृत में “रेष्मन्” शब्द का मूल अर्थ “रेशा” या “सूत्र” — एक सूक्ष्म तंतु है, जो ऊर्जा को बाँधे रखता है, जब तक वह प्रकाश में फूट न पड़े। यहाँ यह “
chaitanya1827
24 अक्टू॰3 मिनट पठन


🌑 सर्गचक्र — सृष्टि का चक्र
“निःशब्दता से एक स्पंदन, स्थिरता से एक ब्रह्मांड।” हर आरम्भ से पहले एक क्षण होता है —एक अपार मौन, जहाँ सब कुछ जो कभी था या होगा,अभी आकारहीन होकर भी जीवित है।यही वह क्षण है, जहाँ सर्गचक्र प्रारम्भ होता है। वैदिक भाषा में “सर्ग” का अर्थ है “सृष्टि” या “प्रस्फुटन”,और “चक्र” का अर्थ है “पहिया” — गति, आवर्तन, अनंत गमन का प्रतीक।ये दोनों मिलकर बताते हैं कि आरम्भ कोई सीधी रेखा नहीं,बल्कि एक वृत्त है — हर सृष्टि पुनःसृष्टि है,हर आरम्भ किसी अनन्त प्रवाह की निरंतरता। प्रवाहम् (Pravaah
chaitanya1827
24 अक्टू॰2 मिनट पठन


🌊 प्रवाहम् (The Eternal Flow)
“जो गति में है, वही निःशब्द स्मृति का प्रवाह है।” हर नदी का एक उद्गम होता है — और एक लौटना भी। प्रवाहम् — “प्रवाह” — वह अनन्त गति है जो सृष्टि और लय, ध्वनि और मौन के मध्य बहती रहती है। यह केवल एक एल्बम नहीं है, यह एक ध्यानमय यात्रा है — ध्वनि के माध्यम से अस्तित्व के जन्म, परिवर्तन और पुनः मिलन की चक्रिक कथा। पहले सर्गचक्र के स्पंदन से लेकर उपसंहार की निःशब्दता तक, प्रवाहम् आत्मा की गति का संगीत है — जहाँ हर तरंग, हर स्वर, एक अगले में विलीन होता जाता है। 🌌 सृष्टि का चक्
chaitanya1827
22 अक्टू॰3 मिनट पठन


धर्म और इसे रिलिजन या मजहब क्यों नहीं कहा जाना चाहिए
धर्म भारत, सबसे पुरानी सनातन हिंदू संस्कृति का घर, जिसकी सभ्यता हजारों साल पहले की उत्पत्ति का पता लगाती है, जहां सभी वेद, पुराण, स्मृति, उपनिषद, महाकाय लिखे गए थे। मुगलों और अंग्रेजों द्वारा आक्रमण की संख्या के बाद भी अब हम इसकी वास्तविक पहचान और मूल सांस्कृतिक सद्भाव की बहाली की ओर बढ़ रहे हैं, जिसे हम कह सकते हैं कि समय में कुछ हद तक खो गया था। हमारा प्राचीन इतिहास, ज्ञान और ज्ञान, आज भी तीन मुख्य कारणों से प्रभावित होने के कारण स्वीकार किया जाता है (ए) भारतीय हिंदू लोगों
chaitanya1827
16 अप्रैल 202214 मिनट पठन


वेद एक प्राचीन भारतीय इतिहास
जैसे-जैसे हम वैदिक रॉक बैंड के रूप में बढ़ रहे हैं, हमारी वैदिक संस्कृति और धातु शैली का संलयन हमारे लिए वैदिक धातु शब्द का गहरा अर्थ खोल रहा है। धातु क्या है, इस बात से अधिकांश दुनिया वाकिफ है, जिसे वे कम समझते हैं वह है 'वैदिक'। वैदिक शब्द 'वेद' शब्द से लिया गया है जो प्राचीन हिंदू शास्त्र हैं। तो यहां हम वेदों की कुछ जानकारी का खुलासा करेंगे। वेद वेद, जो हिंदू धर्म के सबसे पुराने ग्रंथ हैं, का हिंदू संस्कृति में सर्वोच्च स्थान है। यह वैदिक संस्कृत में रचित धार्मि
chaitanya1827
9 जन॰ 20222 मिनट पठन


पुराण, भारतीय 'इतिहास' का एक हिस्सा
भारतीय इतिहास की उत्पत्ति हजारों साल पहले की है जब सनातन धर्म के सभी ग्रंथ मानव जीवन को सभी अर्थों में बेहतर बनाने के लिए लिखे गए थे। इनमें वेद, पुराण, आरण्यक, उपनिषद, श्लोक, स्मृति, श्रीमद्भागवत गीता, रामायण, महाभारत और बहुत कुछ शामिल हैं। यहां हम 'पुराण' के बारे में बात करेंगे। पुराण प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों में से हैं, जिन्हें ऋषियों ने स्वयं देवों के साथ वर्णन में लिखा था। मुख्य रूप से अठारह पुराण हैं और उन सभी में जीवन के दर्शन, घटित घटनाओं, तथ्यों और कहानियों का विशिष्
chaitanya1827
9 जन॰ 20225 मिनट पठन
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