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28 अक्टू॰ 20253  मिनट
🌑 उपसंहार (Upasamhāra — उपसंहार)
“हर अंत, आरंभ की प्रतिध्वनि है।” जब बाढ़ उतर जाती है, जब आकाश अपने अंतिम तूफ़ानी प्रकाश की साँस छोड़ देता है — तब मौन लौटता है।पर वह रिक्तता का मौन नहीं होता, वह स्मृति का मौन होता है। उपसंहार  वही मौन है — प्रवाहम्  की अंतिम गति, जहाँ ध्वनि स्थिरता में उतरती है, जहाँ यात्रा स्वयं में विलीन होकर अपने मूल में लौट आती है। संस्कृत में उपसंहार  का अर्थ है निष्कर्ष, संकलन या समापन।किन्तु दार्शनिक दृष्टि से यह केवल अंत नहीं — यह वह पवित्र कर्म है जहाँ बिखरे हुए सभी अंश पुनः समग्रता में लौट आते हैं।...

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28 अक्टू॰ 20253  मिनट
🌾 ऋतुसंधिलावण्यम् (ऋतु-संधि-लावण्यम् — ऋतुओं के संधि का सौंदर्य)
“जहाँ अंत प्रारंभ में बदलता है, वहाँ सौंदर्य श्वासों के बीच ठहरता है।” ऋतुओं के बीच एक ऐसा क्षण आता है — न तो पूर्ण रूप से ग्रीष्म, न ही वर्षा; न पूर्ण पतन, न ही पुनर्जन्म। यह वह पल है जब स्वयं काल अपनी श्वास रोक लेता है। प्रकाश की तीव्रता मंद हो जाती है, पवन अपनी भाषा बदल लेती है, और समस्त जगत एक पवित्र विराम में झूलता प्रतीत होता है। यही है — ऋतुसंधिलावण्यम् , ऋतुओं के संधि की कृपा। संस्कृत में “ऋतु” का अर्थ है ऋतु या काल का चक्र , “संधि” का अर्थ है मिलन या संगम , और “लावण्यम्” का अर्थ है...

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28 अक्टू॰ 20253  मिनट
🌧️ वृष्टिकाम्पिल्य (Vṛṣṭikāmpilya — Petrichor)
“जब वर्षा थमती है, पृथ्वी फिर से साँस लेती है।” वृष्टि के बाद एक सुगंध उठती है — कोमल, पर अमिट — मानो स्मृति स्वयं जाग उठी हो। वही है वृष्टिकाम्पिल्य  — वह मिट्टी की गंध जब वर्षा उसे छूती है, वह मौन चमत्कार जो प्रलय के बाद जन्म लेता है, तूफ़ान के बाद पुनर्जन्म का पहला श्वास। संस्कृत नाम वृष्टिकाम्पिल्य  दो तत्वों से बना है — वृष्टि  (वर्षा) और कम्पिल्य  (स्पर्श या हल्के कम्पन का भाव)। दोनों मिलकर उस जीवंत क्षण को व्यक्त करते हैं जब वर्षा की बूँदें धरती को चूमती हैं और धरती अपनी साँस छोड़ती...

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chaitanya1827

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