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🌧️ त्विषीमत्तोयोत्सर्ग — तेजस्वी जल-विमोचन (Splendorous Rain)
“वर्षा विनाश नहीं — मुक्ति है। यह आकाश का अपना श्वास है।” रेष्मन् (Reṣman) के मौन और घनेपन के बाद आता है त्विषीमत्तोयोत्सर्ग —वह क्षण जब संचित ऊर्जा टूटकर बहती है, जब आकाश अपने भीतर भरी पीड़ा को संगीत में बदल देता है।यह केवल वर्षा नहीं — यह ब्रह्मांड की साँस छोड़ने की प्रक्रिया है,एक दिव्य प्राणोत्सर्ग जहाँ सब बंधन खुल जाते हैं और गति पुनः जन्म लेती है। संस्कृत में त्विषीमत्त का अर्थ है “तेज से युक्त, प्रकाशमय” और तोयोत्सर्ग का अर्थ है “जल का विमोचन”।अर्थात् यह वह अवस्था
chaitanya1827
24 अक्टू॰2 मिनट पठन


🌩️ रेष्मन् (Reṣman — तूफानी मेघ)
“हर मौन अपनी गड़गड़ाहट को संजोए होता है।” बिजली गिरने से पहले आकाश ठहर जाता है।तूफ़ान आने से पहले एक अजीब-सी निस्तब्धता फैलती है — हवा पर छाया हुआ एक मौन तनाव। रेष्मन् उसी प्रतीक्षा में जन्म लेता है। यह तूफ़ान का कोलाहल नहीं, बल्कि उससे पहले का घनत्व है — वह आध्यात्मिक गहराई जो स्वर्ग के खुलने से पहले वातावरण को भारी कर देती है। संस्कृत में “रेष्मन्” शब्द का मूल अर्थ “रेशा” या “सूत्र” — एक सूक्ष्म तंतु है, जो ऊर्जा को बाँधे रखता है, जब तक वह प्रकाश में फूट न पड़े। यहाँ यह “
chaitanya1827
24 अक्टू॰3 मिनट पठन


🌑 सर्गचक्र — सृष्टि का चक्र
“निःशब्दता से एक स्पंदन, स्थिरता से एक ब्रह्मांड।” हर आरम्भ से पहले एक क्षण होता है —एक अपार मौन, जहाँ सब कुछ जो कभी था या होगा,अभी आकारहीन होकर भी जीवित है।यही वह क्षण है, जहाँ सर्गचक्र प्रारम्भ होता है। वैदिक भाषा में “सर्ग” का अर्थ है “सृष्टि” या “प्रस्फुटन”,और “चक्र” का अर्थ है “पहिया” — गति, आवर्तन, अनंत गमन का प्रतीक।ये दोनों मिलकर बताते हैं कि आरम्भ कोई सीधी रेखा नहीं,बल्कि एक वृत्त है — हर सृष्टि पुनःसृष्टि है,हर आरम्भ किसी अनन्त प्रवाह की निरंतरता। प्रवाहम् (Pravaah
chaitanya1827
24 अक्टू॰2 मिनट पठन
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